चाहत
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May 7, 2010, 12:59 pm
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कोई रौशनी कोई चमक नहीं मुझमे,
फिर भी चाहत है की जुगनू या सितारा हो जाऊ,
कोई कशिश नहीं कोई फन नहीं,
लेकिन दुआ करो लोगो की सबका प्यारा हो जाऊ..
कभी पढ़ नही पाया, कभी लिख नहीं पाया,
चाहता हु की कित्ताबो में जगह पा जाऊ .
पूजा कर नही पाया, नमाज अदा कर नहीं पाया,
चाहता हु की प्रभु की कृपा पा जाऊ.
दान कर नहीं पाया, मदद दे नहीं पाया,
चाहू की जन्नत पा जाऊ,
कभी हिलने की कोशिश नहीं की, कभी चल नहीं पाया,
आज चाहता हु कि परिंदों के से पंख पा जाऊ.
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First four lines are class apart from the rest of the poem. You need to rework the lower portion to raise the level up to first four lines.
Comment by Anshul June 15, 2010 @ 4:28 am